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भक्तों के महत्व

 मद्भक्ता ये नरश्रेष्ठ मद्भक्ता मत्परायणा :  । मद्याजिनो मन्नियमास्तान प्रयत्नेन पूजयेत्। । तेषां तू पावनायाहं नित्यमेव युधिष्ठिरः । उभे संध्ये/धिष्ठामि ह्यस्कन्नं तद व्रतं मम। । तस्मादष्टाक्षरं मन्त्रम मद्भक्तैर्वीतकलमषै : । संध्याकाले तु जप्तव्यं सततं चाद्मशुद्धये। । अन्येषामपि विप्राणां किल्बिषं हि विनश्यति। उभे संध्ये/प्युपासीत तस्माद विप्रो विशुद्धये। । नरश्रेष्ठ ...!  जो मेरे भक्त हो , मेरे में मन लगानेवाले हो , मेरी  शरण में हो , मेरा पूजन करते हो , और नियमपूर्वक मुझ में  ही लगे रहते हो , उनका यत्नपूर्वक  पूजन करना चाहिए।  युधिष्ठिर  अपने उन भक्तोंको पवित्र  केलिए , मैं प्रतिदिन दोनों समय संध्या में व्याप्त रहता हूँ।  मेरा यह नियम कभी खंडित नहीं होता।  इसलिए मेरे भक्तोंको चाहिए कि , वे आत्मशुद्धि के लिए संध्या के समय निरंतर अष्टाक्षर मन्त्र ( ॐ  नमो नारायणाय ) का जप करते रहे।  संध्या और अष्टाक्षर मन्त्र का जाप करने से दुसरे मनुष्योंके भी पाप नष्ट हो जाते हैं।  इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को दोनों काल की संध्या  अवश्य करनी चाहिए। 

A different Jungle Book ..

Video: Happy Vishu to you all...!

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पशु ,पक्षी और मृग आदि सभी प्राणि समझदार होते हैं।

केचिद्विवा तथा रात्रौ प्रनिन्स्तुल्यद्रुष्टयः। . ज्ञानिनो मनुजाः सत्यं किं तु ते न हि केवलम्। । . यतो हि ज्ञानिनः सर्वे पशुपक्षिमृगादयः। . ज्ञानं च तन्मनुष्याणां यत्तेषां मृगपक्षिणां। । मनुष्याणां च यत्तेषां तुल्यमन्यत्तथोभयोः। । कुछ प्राणि दिन में नहीं देखते  दुसरे रात में नहीं देखते तथा कुछ ऍसे  प्राणि हैं जो दिन और रात में बराबर देखते हैं। यह तो ठीक हैं मनुष्य समझदार होते हैं ; किंतु केवल वे ही नहीं होते।  पशु ,पक्षी और मृग आदि सभी प्राणि समझदार होते हैं।  मनुष्योंके समझ भी वैसी ही होती हैं , जैसी उन मृग और पक्षी आदि की होते हैं. तथा जैसी मनुष्यों की होती हैं ,वैसी  मृग-पक्षी आदि की होती हैं।  देवी भागवत अध्यायम -१ (४८ ,४९ ,५० ) കേചിദ്ദിവാ തഥാ രാത്റൗ പ്റാണിന സ്തുലൃദൃഷ്ടയ: ജ്ഞാനിനോ മനുജാ: സത്യം കിം തു തേന ഹി കേവലം യതോ ഹി ഞാനിന: സർവേ പശുപക്ഷിമൃഗാദയ: ജ്ഞാനം ച തന്മനുഷ്യാണാം യത്തേഷാം  മൃഗപക്ഷിണാം മനുഷ്യാണാം ച യത്തേഷാം തുല്യമന്യത്തഥോഽഭയോ : ചില പ്റാണികൽക്ക് പകൽ  കാഴ്ചയില്ല ,മറ്റു ചിലതിന് രാത്റിക്കാഴച്ചയും ഇല്ല പിന്നെ മറ്റു ചിലതിന് രാ -പകൽ കാഴ്ച്ച ഒരുപോലെയുമാണ് . മനുഷ്യൻ ജ്ഞാന

पशुपत्याष्टकं Pashupati Ashtakam - The octet on lord of all beings

ध्यानम् ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्  । पद्मासीनं समन्तात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम ॥१॥ स्तोत्रम् पशुपतीन्दुपतिं धरणीपतिं भुजगलोकपतिं च सती पतिम्  । गणत भक्तजनार्ति हरं परं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥१॥ न जनको जननी न च सोदरो न तनयो न च भूरिबलं कुलम्  । अवति कोऽपि न कालवशं गतं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ २॥ मुरजडिण्डिवाद्यविलक्षणं मधुरपञ्चमनादविशारदम्  । प्रथमभूत गणैरपि सेवितं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥३॥ शरणदं सुखदं शरणान्वितं शिव शिवेति शिवेति नतं नृणाम्  । अभयदं करुणा वरुणालयं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥४॥ नरशिरोरचितं मणिकुण्डलं भुजगहारमुदं वृषभध्वजम्  । चितिरजोधवली कृत विग्रहं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥५॥ मुखविनाशङ्करं शशिशेखरं सततमघ्वरं भाजि फलप्रदम्  । प्रलयदग्धसुरासुरमानवं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥६॥ मदम पास्य चिरं हृदि संस्थितं मरण जन्म जरा भय पीडितम्  । जगदुदीक्ष्य समीपभयाकुलं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥७॥ पशुपतेरिदमष्टकमद्भुतं विरि

മനസ്സില് മടിയുടെ സ്മരണകൾ ഉണർത്തിക്കൊണ്ട് വീണ്ടുമൊരു ഹർത്താൽ കൂടി , എല്ലാവർക്കുൻ സ്നേഹമസൃണമായ ' ഹർത്താൽ ദിനാശംസകൾ ....!