गोमती कीर्तयिष्यामि सर्व्वापापप्रणाशिनीम्।
तां तू में वदतो विप्रा शृणुष्व सुसमाहितः। ।
गावः सुरभयो नित्यं गावो गुग्गुलगंधिकाः।
गावः प्रतिष्ठा भूतानां गावः स्वस्त्ययनं परम। ।
अन्नमेव परं गावो देवानां हविरुत्तमम्।
पावनं सर्व्वभूतानां रक्षन्ति च वहन्ति च। ।
हविषाः मंत्रपूतें तर्पयन्त्यमरान दिवि।
ऋषीणामग्निहोत्रेषु गावो होम प्रयोगिताः। ।
सर्ववेषामेव भूतानां गावः शरणमुत्तमम्।
गावः पवित्रं परमं गावो होम प्रयोजितः। ।
सर्व्वेषामेव भूतानां गावः शरणमुत्तमम्।
गावः पवित्रं परमं गावो मङ्गलमुत्तमम्।।
गावः स्वर्गस्य सोपान गावो धन्याः सनातनाः।
(ॐ ) नमो गोभ्यः श्रीमतीभ्यः सौरभेयीभ्य एव च। ।
नमो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्राभ्यो नमो नह।
ब्राह्मणाश्चैव गावश्र्य कुलमेकम द्विधा स्थितम्। ।
एकत्र मन्त्रास्तिष्ठन्ति हविरेकत्र तिष्ठति।
देवब्राह्मणगोसाधुसाध्वीभिः सकलं जगत। ।
धार्यते वै सदा तस्मात् सर्व्वे पूज्यतमाः सदा।
यत्र तीर्थे सदा गावः पिबन्ति तृषिता जलम्। ।
उत्तरन्ति पता येन स्थिता तत्र सरस्वती।
गवां हि तीर्थे वसतीह गँगा पुष्टिस्तथा तद्रजसि प्रवृद्धा। ।
लक्ष्मीः करीषे प्रणतौ च धर्मस्तासां प्रणामं सततं च कुर्यात्।
गोमती विद्या
जलाधिनाथ वरुण के पुत्र- पुष्कर द्वीप के स्वामी -सर्व्वशास्त्रोंके ज्ञाता पुष्कर , भगवान परशुराम के पूछने पर दस विद्या का उपदेश करते हुए उनसे कहते हैं :-
गोऐं नित्यसुरभी रूपिणी
हे विप्रवर अब मैं गोमती विद्या का वर्णन कर रहा हूँ। यह गोमती विद्या , समस्त पापोंका समूल नाश करनेवाली हैं। इसको आप पूर्णतया एकाग्रचित होकर सुनिए :-- गौओंकी प्रथम उत्पादिका कल्याणमयी , पुण्यमयी , सुन्दर श्रेष्ठ गन्धवाली हैं. वे गुग्गुलके सामान गन्धसे संयुक्त हैं। गायों पर ही समस्त प्राणियोंके समूह प्रतिष्ठित हैं। वे सभी प्रकार के परम कल्याण अर्थात धर्म, अर्थ , काम, एवं मोक्ष की भी सम्पादिका है। गौएँ समस्त उत्कृष्ट अञ्नोंके उत्पादन की मूलभूत शक्ति हैं। और वे ही सभी देवताओंके भक्ष्यभूत हविष्यान्न और पुरोडाश आदि की भी सर्व्वोत्कॄष्ट मूल उत्पादिका शक्ति हैं। यह सभी प्राणियोंको दर्शन -स्पर्शादि के द्वारा सर्वथा शुद्ध निर्मल एवं निष्पाप कर देती हैं। वे दूध , दही एवं घी आदि , अमृतमय पदार्थोंका क्षरण करती हैं तथा उनके वत्सादि, समर्थ वृषभ बनकर सभी प्रकार का बोझ ढ़ोने और अन्न आदि उत्पादन का भार वहां करने में समर्थ होते हैं। वेदमंत्रोंसे पवित्रिकृत हविष्योंके द्वारा स्वर्ग में स्थित देवताओंको वे ही परतृप्त करती हैं। ऋषि -मुनियोंके यहाँ भी यज्ञों एवं पवित्र अग्निहोत्रादि कार्यों में हवनीय द्रव्यों केलिये गौओंके ही घृत ,दुग्ध आदि द्रव्यों के प्रयोग होते हैं। . जहाँ कोई भी शरणदाता नहीं मिलता हैं ,वहीँ विश्व के समस्त प्राणियों केलिए गायें ही सर्व्वोत्तम शरण दात्री बन जाती हैं। पवित्र वस्तुओंमे गाय ही सर्ववाधिक पवित्र हैं तथा सभी प्रकारके समस्त मंगलजात पदार्थों की कारण भूत हैं। गायें स्वर्ग प्राप्त करने की प्रत्यक्ष मार्गभूता सोपान हैं, और वे निश्चित रूपसे तथा सदा से ही समस्त धन -समृद्धि की मूलभूत सनातन कारण हैं। लक्ष्मी को अपने शरीर में स्थान देने वाली गौओंको नमस्कार ! सुरभि के कुल में उत्पन्न शुद्ध एवं पवित्र , सरल एवं सुगन्धियुक्त गौओंको नमस्कार ! ब्रह्म्पुत्री गौओंको नमस्कार !अंतरब्रह्म से सर्व्वथा पवित्र एवं सुदूर तक समस्त वातावरण को शुद्ध एवं पवित्र करनेवाली गौओंको बार-बार प्रणाम..!
वास्तव में गौएँ एवं ब्राह्मण दोनों एक कुलके ही प्राणी हैं। दोनों में विशुद्ध सत्व विद्यमान रहता हैं। ब्राह्मणों में वेदमन्त्रोंकी स्तिथि हैं ,तो गौओं में यज्ञ के साधनभूत हविष्य की। इन दोनों के द्वारा ही यज्ञ संपन्न होकर विष्णु आदि देवताओंसे लेकर समस्त चराचर प्राणियों का आप्यायन होता हैं। यह सारा विश्व सत्व से परिपूर्ण देवता,ब्राह्मण,गाय ,साधु , संत-महात्मा पतिवृता सती -साध्वी , सदाचारिणी नारियोंके पुण्योंके आधार पर ही टिका हुआ हैं ।ये ही धार्मिक प्राणी सम्पूर्ण विश्व को सदा धारण करते हैं। अतः यह सदा पूजनीय एवं वन्दनीय हैं। जिस जलराशि में प्यासी गायें जल पीकर अपनी तृषा शांत करती हैं और जहाँ जिस मार्ग से वह जलराशियोंको लाँघती हुई नदी आदिको पार करती हैं ,वहां गंगा ,यमुना , सिंधु,सरस्वती आदि नदियां या तीर्थ निश्चित रूप से विद्यमान रहते हैं। गौ रुपी तीर्थों में ,गंगा आदि सभी नदियां तथा तीर्थ निवास करते हैं और गौओंके रज कण में सभी प्रकार के निरंतर वृद्धि होनेवाली धर्म - राशि एवं पुष्टि का निवास रहता हैं। गायोंके गोबर में साक्षात भगवती लक्ष्मी निरंतर निवास करती हैं ,और इन्हे प्रणाम करने में चतुष्पाद धर्म संपन्न हो जाता हैं। अतः बुद्धिमान एवं कल्याणकामी पुरुषोंको ,गायों को निरंतर प्रणाम करते रहना चाहिये।MANOJ KURUP: Kamadhenu (manojkurup1.blogspot.com)
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