सीताजी का हठ बना उनके कष्टों का कारण
by Manoj Kurup
Published January 9, 2016
एक बार महाराज जनक की पुत्री सीता अपनी सखियों के साथ उद्यान में खेल रही थीं, वहां उन्हें नर और मादा तोते का जोड़ा बैठा दिखाई दिया। वे दोनों एक वृक्ष की डाल पर बैठे-बैठे एक बड़ी मनोहर कथा कह रहे थे। कथा कुछ इस तरह थी...
इस पृथ्वी पर श्रीराम नाम से प्रसिद्ध एक बड़े राजा होंगे। उनकी महारानी का नाम सीता होगा। श्रीराम बड़े बलवान और बुद्धिमान होंगे और उनके समस्त राजाओं को अपने अधीन कर सीताजी के साथ ग्यारह हजार वर्षों तक राज्य करेंगे। धन्य है सीता देवी और धन्य हैं श्री रामजी, जो एक दूसरे को पाकर इस लोक में आनंदपूर्ण विहार करेंगे।
तोते के मुंह से ऐसी बात सुनकर सीता ने सोचा कि कहीं ये दोनों पक्षी मेरे ही जीवन कथा तो नहीं कह रहे हैं। इन्हें पकड़कर क्यों न सभी बातें पूंछूं? ऐसा विचार कर उन्होंने अपने सेवकों से कहकर दोनों पक्षियों को चुपके से पकड़वा लिया। सीता ने उन दोनों से कहा कि तुम दोनों डरो मत, मैं सिर्फ यह जानना चाहती हूं कि तुम दोनों कौन हो? कहां से आए हो? राम कौन हैं और सीता कौन है? तुम्हें यह जानकारी कैसे मिली?
इतने सारे प्रश्न सुनकर दोनों तोते चौंक गए। तब दोनों कहा कि वाल्मीकि नाम के प्रसिद्ध बहुत बड़े ऋर्षि हैं। हम लोग उन्हीं के आश्रम में रहते हैं। उन्होंने एक बड़े ही सुंदर काव्य की रचना की है, जिसका नाम रामायण है। उनकी कथा बड़ी ही मनोहरणी है। महर्षि अपने शिष्यों को रामायण पढ़ाते हैं।
इस तरह वह तोते सीताजी को रामायण की कथा सुनाने लगे। कथा सुनने के बाद सीताजी ने कहा कि तुम जिस जनकनंदनी की बात कर रहे हो, वह मैं ही हूं। श्रीराम ने मेरे मन को अभी से आकर्षित कर दिया है। वे यहां आकर जब मुझे वरण करेंगे, तभी मैं तुम्हें छोडूंगी।
इसलिए जब तक श्रीराम नहीं आते, तब तक तुम दोनों यहां सुख से रहो और मीठे-मीठे फलों का उपभोग करो। यह बात सुनकर दोनों तोते डर गए। उन्होंने सीताजी से कहा कि हम लोग पेड़ों पर रहने वाले स्वच्छंद पक्षी हैं और मादा गर्भिणी है। इसलिए उसने कहा कि वह अपने बच्चों को जंगल में ही जन्म देना चाहती है।
उसने बहुत प्रार्थना की, लेकिन सीताजी नहीं मानीं। इस हठ के चलते मादा तोते ने राम-राम का उच्चारण करते हुए अपने प्राण त्याग दिए। उस मादा तोते के लिए स्वर्ग से एक विमान आया और वह दिव्य रूप धारण कर उस विमान के द्वारा स्वर्गलोक चली गई। पत्नी के वियोग में नर तोते ने भी अपने प्राण त्याग दिए।
कहते हैं कि सीता के विरह दुख का बीज उसी समय पड़ गया था, मादा गर्भिणी तोते ने प्राण त्याग दिए थे। इसी बैर का बदला लेने के लिए उस नर तोते ने अयोध्या में धोबी के रूप में जन्म लिया और उसके लांछन के कारण सीताजी को भी गर्भिणी की दशा में श्रीराम से अलग होना पड़ा था।