एक बादशाहत के पतन ..!

इस कहानी की  सभी पात्र एवं घटनाएं काल्पनिक हैं। किसी भी व्यक्ति ,जीवित या मृत ,से इसका सम्बन्ध , महज़ संजोग ही माना जाय।
बादशाह , सितारा -ए  -आलम , शाह -ए -रूह खान प्रधम ,  अपने मुल्क में , अपने प्रति बढ़ती असहिष्णुनता से   अत्यंत चिंतित हो गया।  गद्दी को बचाने केलिए विधाता से कई 'मन्नतें' मांगे।  पर असहिष्णुता वद्रोह में बदल गया।  अमरिका से जो सहायता का प्रतीक्षा था वह भी निष्भल हुआ।  अमरिका के साफ़ इंकार के बाद , बादशाह -ए -आलम विह्वल होकर, मून के दरवाज़ा पे दस्तख दिया।  मून ने  तुरंत ही 'पञ्च ' महाशक्तियोंके संयुक्त बैठक बुलाया। काफी बहस एवं विचार-विमर्श के बाद , निर्णय लिया गया कि, बादशाह के मुल्क में 'मून की सेना' भेजा जाएँ। ज़्यादा समय नहीं लगा ,  सेना बादशाह के मुल्क में पहुँच गया।  नौजवान विद्रोही सेना के साथ , बादशाह -ए -आलम और  मून के संयुक्त सेना के साथ घोर लड़ाई हुई। कई हफ्ते , दुनिया भरके टेलीविज़न चानलों पर ,फिर अखबारों में भी लड़ाई की खबरें  सुर्ख़ियों पर  रहे। युद्धके अंत में , बादशाह को अपना बादशाहत से ' अलविदा ' कहना पड़ा।  विजयी विद्रोहियों ने  देश को एक स्वतन्त्र -गणतंत्र -प्रजातंत्र देश  घोषित किया। और वे लोग ,अपने ही में से ,एक नौजवान युवक को नया स्वतन्त्र देश का भार सौंपा। अपने साथी लोग  बादशाह को , 'कभी अलविदा न कहना', यह  कहकर रोकना चाहे पर , स्थानभ्रष्ट बादशाह पड़ोस देश में शरण लिया। शुभम।
The End...!

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