बात १६७६ की हैं। उन फ़्राँस में ली ग्राण्ट वौटिल नाम का एक बावर्ची रहता था। लोग उसे एक मंजा हुआ बावर्ची मानते थे। वे कहते थे कि अगर ली ग्राण्ट कोई खाना बनाता हैं , वह सभी को पसंद आता हैं। इस तरह ली ग्राण्ट की लोग काफी तारीफ़ करते थे। इससे ली ग्राण्ट अत्यंत प्रसन्न और संतुष्ट होता था और यूँ वह तारीफोँका आदि भी हो गया था।
एक बार फ्राँस के राजकुमार 'डी कोंडे ' ली ग्राण्ट के बारे में सुना। प्रिंसने उसे शाही रसोई का ख़ास बावर्ची बना दिया। शेफ़ बनकर ली ग्राण्ट अत्यंत प्रसन्न था। शाही परिवारके लोगोंको भी उसका बनाया व्यंजन अच्छा लगता था। वे सभी उसकी बहुत प्रशंसा करते थे। उसी दौरान साम्राट लूई -चतुर्थ का जन्मदिन आया। उसदिन राजा को खुश करने केलिए ली ग्राण्ट वौटिल ने कुछ विशिष्ट करने की कोशिश की। उसने अनेक प्रकारके पकवान बनाकर लूई राजा को खुश करने का प्रयत्न किया। उसे साम्राट से भी तारीफ़ पाने की आशा थी। लेकिन दुर्भाग्यवश उसके द्वारा बनाया गया कोई भी पकवान राजा को पसंद नहीं आया। राजाने यही बात सरे आम घोषणा भी कर दी। इस पर शैफ दे क्युसैन , ली ग्राण्ट वौटिल का दिलको बहुत ढेस पहुँचा। वह प्रशंसा पाने इस कदर आदि हो चूका था कि , उसे यह घोर अपमान सहन नहीं हुआ। दुखके मारे , उसने आत्महत्या कर ली। ली ग्राण्ट वौटिल की मृत्यु के बारे में सुनकर , सम्राट को भी काफी दुःख हुआ , किन्तु उन्हें यह समझ में आगया कि किसी प्रकार का अवहेलना भी मृत्यु ही हैं।
अकीर्तिं चापि भूतानि
कथयिष्यन्ति तेഽ व्ययाम्।
संभावितस्य चाकीर्तिं -
र्मरणादतिरिच्यते ।।
कथयिष्यन्ति तेഽ व्ययाम्।
संभावितस्य चाकीर्तिं -
र्मरणादतिरिच्यते ।।
भगवद्गीतायाः द्वितीयोध्यायस्य सांख्ययोगस्य चतुस्त्रिंशत्तमः श्लोकः।
तात्पर्यम्
यदि त्वं युद्धं न करिष्यसि तर्हि जनाः दीर्घकालं यावत् तव अकीर्तिं कथयिष्यन्ति । सर्वैरपि प्रशंसनीयस्य मानिनः च जनस्य अकीर्तिः मरणादपि अधिकां पीडां जनयति ।
तात्पर्य
हे अर्जुन , लोग सदैव तुम्हारे अपयश का वर्णन करेंगे और सम्मानित व्यक्ति के लिए अपयश तो मृत्यु से भी बढ़कर है |