ध्यानसे बीमार आदमी ..!

जब कृष्ण जिंदा थे तो कौन हिन्दू था ? हिन्दू शब्द भी नहीं था।  जब कोई जीवित गुरु मौजूद होता हैं, तब ध्रर्म विशेषण -रहित होता हैं।  जब गुरु विदा हो जाता हैं , धीरे-धीरे पंडित-पुरोहित इकट्ठे होते हैं ,फिर विशेषण महत्वपूर्ण होने लगता हैं।  जहाँ विशेषण बहुत महत्वपूर्ण हो जाये ,  निकल भागना।  अब  वहाँ कुछ भी नहीं हैं - राख हैं।  अंगारा बुझ चुका  
और जिसके ह्रदय में परमात्मा विरह की छुरी चुभ गयी ,अब किसी औषधि से यह बात हल होनेवाली नहीं हैं।   अब यह कोई इलाज से  किसी औषधि से यह  हल नहीं होगी । पश्चिम में  हज़ारों तरह की बीमारियोंका इलाज खोजा जाता हैं।  लेकिन अभी पश्चिम में इस बीमारी के सम्बन्ध में कुछ ख़याल नहीं हैं।  पश्चिमके चिकित्सकोंको ,कि ऐसी भी बीमारी होती हैं - भक्त की बीमारी , प्रेमी की बीमारी - जिसका कोई इलाज इस संसार में नहीं हैं।
जापान इ झेन की हज़ारों साल की परंपरा के बाद ऐंसा अनुभव जापानके डाक्टरोंको होना शुरू हुआ कि कुछ लोग एक अजीब तरह की बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं , जिसका
पागलपन   कोई संबन्ध  हैं , लेकिन पागलपन जैसी लगती हैं , तो जापान अकेला मुल्क हैं साड़ी दुनिया मैं , जहां  का चिकित्साशास्त्र एक ख़ास तरह की बीमारीको झेन की बीमारी कहता हैं।  यह बड़ी ऊंची बात हैं।  और जब भी कोई चिकित्सक देखता हैं कि यह आदमी झेनसे  बीमार हैं ,ध्यानसे बीमार हैं ,इसकी बीमारी ध्यान हैं ,परमात्मा हैं - तो उसका इलाज नहीं करता।  उसको भेज देता हैं किसी सद्गुरु के पास ,किसी आश्रम में , कि तू वहां चला जा।  यहाँ हमारे पास इलाज नहीं हो सकेगा।
यह तेरी कोई शरीर की बीमारी नहीं हैं , न मन की बीमारी हैं।  यह आत्मिक हैं।  आदमी तीन ताल पर जीता हैं - शरीर , मन ,आत्मा।  पहले तो पश्चिमके चिकित्सक मानते थे : सब बीमारियां शरीर की होती। हैं।  फिर बामुश्किल  , बड़ी मुश्किल से उन्होंने स्वीकार करना शुरू किया   कि कुछ बीमारियां मनकी भी   हैं।  फ्रायड के बाद पचास सालके निरंतर संघर्ष  से यह बात  स्वीकार हुई कि  बीमारियां मन की भी होती  हैं ।  तो अब मानसिक बीमारियों केलिए अलग स्थान  हो गया
  लेकिन अभी तीसरी बीमारी स्वीकृत न  हो पायी हैं कि कुछ बीमारियां आत्मा की होती   हैं और उनका कोई इलाज नहीं किया जा सकता।  यह सौभाग्य हैं।   अनुभव से हो जाती हैं।  वह विरह की बीमारी हैं।   वह परमात्मा से   मिलान से ही जाती हैं।
पश्चिम में एक बहुत बड़ा विचारक हैं : आर.डी.लेंग।  उसने बहुत-से पागलोंका अध्ययन किया हैं।  मनोवैज्ञानिक हैं।  और उसने इस  सम्बन्ध में बड़ी मेहनत की है कि  बहुत -से पागल पश्चिम के पागलकानोंमे बंद हैं , जो पागल नहीं हैं।  किसी और सदी में होते तो भक्त समझे जाते।  अगर पूरब में होते तो ध्यानी समझे जाते।
और पागलख़ानोंमे बंद हैं, उनका इलाज किया जा रहा हैं , इंजेक्शन दिए जा रहे हैं , बिजली के शॉक दिए जा रहे हैं।  
ओशो 


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