राम -राम क्यों कहूँ ?

 इस युग  कथन ...!
' यस्याति वित्तं स नरः कुलीनः
स पण्डितः स श्रुतवान गुणज्ञ:
स एव वक्ता स च दर्शनीयः
सर्वे गुणाः कांञ्चनमाश्रयन्ति '


" आज के युग में जिस के पास धन हैं , वह अच्छे कुल का माना जाता हैं, वह पंडित हैं , विद्वान है वह गुणवान हैं, वह श्रेष्ठ वक्ता हैं . वह प्रातः दर्शनीय हैं, अतः इस युग में व्यक्ति में नहीं , समस्त गुण धन में है और जिसके पास धन हैं उसके पास ही उपरोक्त सभी विशेषतायें  हैं।"
 राम -राम क्यों कहूँ ?

 एक पंडितजी के पास एक तोता था, वह राम-राम,राम-राम जपता था। बड़ा धार्मिक तोता था!. तोते अक्सर धार्मिक होते हैं। वह तोता सदा राम नाम का चदरिया ओढ़े रहता था। उसकी बड़ी ख्याति थी। पंडितजी के पास एक महिला आती थी। पंडितजी के तोते को देखकर वह भी एक तोता खरीद लायी।मगर वह तोता बड़ा नालायक था। वह गालियाँ बकता था। किसी गलत संगत  में रहा था। वह महिला उसको बहुत राम-राम करवाए, लेकिन वह कहे :- ' ऐसी की तैसी राम-राम की । बुढ़िया  ने कहा :- हद हो गयी। यह तोता किस तरह का तोता हैं?.  बुढ़िया ने पंडितजी से कहा कि:- ' मेरा तोता बिलकुल नालायक हैं और मेरी हालत खराब हैं।
पंडितजी ने कहा :- ' तू ऐसा  कर , तेरे तोते को यहाँ ले आ। तुम्हारा तोता दस-पंद्रह दिन मेरे तोते का सत्संग करले , सब ठीक हो जाएगा मेरा। यह तोता बहुत विद्वान् है।यह तो पिछले जन्मों का भक्त समझो, यह पहुंची हुइ  आत्मा है।
वह तोता बैठा था, बस राम-राम राम-राम जप रह था। उसके  चेहरे पर बड़ा भक्ति-भाव दिखाई पड़ता था। महिला ने सोचा कि शायद पंडितजी ठीक कहते हैं। ले आई अपने तोते को  ।दोनों को एक ही पिंजड़े में बंद कर दिया। पांच-सात दिन के बाद पंडितजी एकदम भागे आये ।
महिला से कहा :- 'ले जा अपना तोता '
महिला ने पुछा :- ' क्या हुआ पंडितजी।।?क्या मेरा तोता भी राम-राम करने लगा?
पंडितजी बोले :- अरे तेरे तोते के चक्कर में आकर मेरे तोते ने भी राम-राम कहना बंद कर दिया। आज सुबह कहा कि :- 'कह भाई राम-राम'।
उसने कहा :- ऐसी की तैसी राम की।
मैं तो खबरा  गया यह सुनकर।
तो मैं ने उस से पुछा :- आज तुम्हे क्या हो गया हैं? इतने दिनों से तो तु राम-राम कहता था।आज ऐसी बाते क्यों कर रहा हैं?
उसने कहा :- 'जिस वजह से जपता था वह मेरी मनोकामना पूर्ण हो गयी। एक प्रेयसी की तलाश थी, यह आ गयी। इसी के लिए राम-राम जप रहा था। अब जब वह आ गई , मेरी इच्छा  पूर्ण हो गई, तो अब में राम-राम क्यूँ जपूँ ?


 







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