"To define God is to deny God. You can give the definition of a finite object. How can you define a limitless or the infinite being who is the source and ultimate cause of everything....?.I f you define God , you are limiting the limitless one , you are confining him with concept of mind, but he can be realized through Japa and meditation with a pure , subtle and one pointed mind...!"
प्राणियों केलिए वर्त्तमान शरीर को त्याग कर इस लोक से परलोक में जाने के, वेदों में दो मार्ग बताये गये हैं - एक देवयान और दूसरा पितृयान। देवयान मार्ग शुक्ल और दीप्तिमय हैं तो , पितृयान कृष्ण और अन्धकारमय हैं। इसीका गीता में भी प्रतिपादन किया गया हैं :- शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते । एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुनः ॥ ८.२६ ॥ क्योंकि शुक्ल और कृष्ण – ये दोनों गतियाँ अनादिकालसे जगत् – (प्राणिमात्र) के साथ (सम्बन्ध रखनेवाली) मानी गयी हैं । इनमें से एक गति में जानेवाले को लौटना नहीं पड़ता और दूसरी गति में जानेवाले को पुनः लौटना पड़ता है । (८.२६) शुक्ल अधवा देवयान को अनावृत्ति ( मुक्ति) मार्ग और कृष्ण ( पितृयान )को पुनरावृत्ति मार्ग बताया गया हैं। इस मुक्ति मार्ग को ही अर्चिरादि मार्ग कहते हैं। अर्चि अग्नि को कहते हैं जो प्रकाश कारक हैं। अर्चिरहः सितः पक्ष उत्तरायण वत्सरो। मरुद्रवीन्दवो विद्युद्वरुणेंद्र चतुर्मुखाः। । एते द्वादश धीराणां परधामा वाहिकाः। वैकुण्ठ प्रापिका विद्युद्वरुणा देस्त्वनुग्रहे।।...
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