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കർണ്ണൻ

  കർണ്ണൻ എന്നും സ്വന്തം മൂല്യങ്ങളെ ഉയര്ത്തിപ്പിടിച്ചുകൊണ്ട്‌ ജീവിച്ച ആളാണ്‌ . അതാണ്‌ ഞാൻ കർണ്ണനെ ഇഷ്ടപ്പെടാനും കാരണം . മഹാഭാരത യുദ്ധ സമയത്ത് ശ്രീകൃഷ്ണൻ കർണ്ണനോട് ദുര്യോധനനെ ഉപേക്ഷിച്ചു സഹോദരങ്ങളോടൊപ്പം ചേരാൻ നിർദ്ദേശിച്ചപ്പോൾ , കൌരവർ  പരാജിതരാകും എന്ന് അറിഞ്ഞു കൊണ്ടുതന്നെ , തന്റെ  സുഹൃത്തിനെ ചതിക്കുവാൻ തയ്യാറല്ല എന്ന് പറഞ്ഞൊഴിഞ്ഞത്  അദ്ദേഹത്തിന്റെ വേറിട്ട മാഹാത്മ്യത്തെ വെളിപ്പെടുത്തുന്ന ഒരു സംഭവം ആണ്. Karna - Was He a Hero or a Villain?

Of Religion by the Heavenly Perfections

Bhagavad-Gita: Chapter 10

Thousands of Shiva Lingas carved throughout the river bed....!

Dry Weather Reveals Amazing River With Thousands of Shiva Lingas

Some "little people" with their friends...!

Petition: BOYCOTT KERALA TOURISM & PRODUCTS   Stray dogs culling: Boycott Kerala campaign gains momentum

Fall of Bhishma !

दो कुतोंके प्रत्युपकार ...!

एक बार दो कुत्ते गंगा स्नानार्थ साथ-साथ रवाना हुए। एक  दिन   किसी नगर में भूखसे व्याकुल हो कर दोनों अलग-अलग भोजनकी तलाश में गये। पहला श्वान एक ग़रीब ब्राह्मण के घर में गया वहाँ रखी हुई थाली   में से रोटी खाने लगा। ब्राह्मण ने देख कर कुछ भी नहीं किया। दूसरा कुत्ता एक सेठ के घर घुस गया  ,जहाँ पर बिना कुछ नुक्सान किये ही लाठीसे उसे अधमरा कर दिया गया। मिलने पर पहले कुत्ता इसका कारण पूछा  , तब दुसरे कुत्ता ने बोला :- बिना बिगार मार भुगताई। मैं तो करवत लेसूँ भाई।। करवत लेह अवतरऊँ जाई। वान्ये के जनमूँ दुखदाई। । यह सुनकर पहले कुत्ता भी कहा :- ब्राह्मण सत्त कहा कूँ तोकूँ। दीन्हो नहीं कछु दुःख मोकूँ।। मैं भी करवत लेसूँ भाई। ब्राह्मण गृहे अवतरऊँ जाई। । पुत्र होय सुख भुगताऊँ। फलदायक ऎसे मन चाऊँ। ऐसा निश्चय करके दोनोंने काशी में करवत ली। दूसरा कुत्ता तो सेठके यहाँ उत्पन्न हुआ और जन्मसे ही सदा रोगी बनकर विविध प्रकारसे खर्च कराया। बड़ा होने पर , वह कभी बालोंको खींचता , कभी -कभी पत्थर मारता , तोड़-फोड़ करता। अंत में उसने  एक दिन लाठीसे सेठ का मस्तक ही फोड़ डाला। इस प्