त्रिथावस्थस्य देहस्य कृमिविङ्भस्मरूपतः। को को गर्व: क्रियते ताक्षर्य क्षणविध्वंसिभिरनरै :।। गरुड़ पुराण -उत्तर -५ /२४ गरुड़जी इस शरीरकी बस , तीन प्रकार की ही अवस्थाएँ हैं -कृमि ,विष्ठा और भस्म। पृध्वीमे गाड़ देनेके बाद इसमें कीड़े पड़ जाते हैं ,यह कृमिरूप हो जाता हैं। बाहर या जल में फेंके जाने पर मगर ,घड़ियाल ,कौए ,कुत्ते सियार ,गीध आदि जीव इसे खाकर विष्ठा कर डालते हैं तथा आग में जला डालने पर यह भस्म हो जाता हैं। ऐसे क्षणभंगुर शरीर पर मनुष्य के गर्व का क्या अर्थ हैं ? http://epaper.deccanchronicle.com/articledetailpage.aspx?id=6656159
‘आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका. पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः’ अर्थात – समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभूमि है जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्य भमिू है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है… A Hindu is a person who regards this land of Bharatavarsha, from the Indus to the seas as his Fatherland as well as his holy land, that is the cradle land of his religion.