त्रिथावस्थस्य देहस्य कृमिविङ्भस्मरूपतः।
को को गर्व: क्रियते ताक्षर्य क्षणविध्वंसिभिरनरै :।।
गरुड़ पुराण -उत्तर -५ /२४
गरुड़जी इस शरीरकी बस , तीन प्रकार की ही अवस्थाएँ हैं -कृमि ,विष्ठा और भस्म। पृध्वीमे गाड़ देनेके बाद इसमें कीड़े पड़ जाते हैं ,यह कृमिरूप हो जाता हैं। बाहर या जल में फेंके जाने पर मगर ,घड़ियाल ,कौए ,कुत्ते सियार ,गीध आदि जीव इसे खाकर विष्ठा कर डालते हैं तथा आग में जला डालने पर यह भस्म हो जाता हैं। ऐसे क्षणभंगुर शरीर पर मनुष्य के गर्व का क्या अर्थ हैं ?
को को गर्व: क्रियते ताक्षर्य क्षणविध्वंसिभिरनरै :।।
गरुड़ पुराण -उत्तर -५ /२४
गरुड़जी इस शरीरकी बस , तीन प्रकार की ही अवस्थाएँ हैं -कृमि ,विष्ठा और भस्म। पृध्वीमे गाड़ देनेके बाद इसमें कीड़े पड़ जाते हैं ,यह कृमिरूप हो जाता हैं। बाहर या जल में फेंके जाने पर मगर ,घड़ियाल ,कौए ,कुत्ते सियार ,गीध आदि जीव इसे खाकर विष्ठा कर डालते हैं तथा आग में जला डालने पर यह भस्म हो जाता हैं। ऐसे क्षणभंगुर शरीर पर मनुष्य के गर्व का क्या अर्थ हैं ?
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