സർക്കാർ സ്പോണ്സേർഡ് ഞാനെന്ന വർഗ്ഗശത്രുവിന്റെ ഉന്മൂലന മഹായജ്ഞമായതുകൊണ്ട് എനിക്കൊന്നും ചെയ്യാൻ കഴിയില്ല . പക്ഷേ ആ നിസ്സഹായ അവസ്ഥയിലും എനിക്ക് ജീവിച്ചല്ലേ പറ്റൂ ...!"
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““अंधे आगू नर राणे, प्रेरे अंधे मार्ग ड़ारे अंधे भावधि गहिरे बूडत , क्यूँ कर उतरहि पारे “ जिन्हें स्वयं रस्ते का पता नहीं वह नेता गन प्रजा का क्या मार्गदर्शन करेंगे ….!. स्वयं अंधकूप में गिरेंगे ही साथ जनता को भी साथ ले डूबेंगे …..!”” - श्री चन्द्र जी " ““राज नरन पित सन्मुख कन्या घर कर भोग कमायो मात पिता सुत पेखन लूटी , न्याय द्धन्दोर पिटायो..!” अगर कोई साहस बटोर कर न्याय केलिए गुहार करे उस बहिन बेटी की ऐसी दुर्गति की जाती हैं की वह स्वयं को भी मुह दिखाने लायक नहीं रहती …!. ऐसी लुटी हुई ओउरतों के लिए वेश्या वृति ही फिर निवृति…!.” - सद्गुरु श्रीचन्द्र जी
'धर्मात्माओंको सदा परमात्मा का एहसास'
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किसी शहर में एक धर्मात्मा रहता था I वह सदा भागवतभक्ति में मगन रहता था I एक रात उस आदमी ने एक अजीब सा सपना देखा I उसने देखा , कि वह सागर किनारे अपने भगवान के साथ चला जा राहा है , और आकाश में , उसके जीवन के तमाम घटनाओं के दृश्य , एक- एक करके दृष्टीगोचर हो रहे हैं I प्रत्येक दॄष्योंके साथ -साथ, समुद्र के रेती पर , उसके पगचिह्नों के साथ , एक और जोड़ी पादचिह्न पड़ते जा रहे थे। इसका मतलब था , उसके आराध्य प्रभु भी उसके साथ चल रहे थे, और दूसरे पगचिह्न उन्ही के थे। धीरे -धीरे उसके जीवन का अंतिम पड़ाव आ गया। वह दृश्य सारे उसकी आँखोंके सामने से गुजरने पर ,उसने पलटकर रेती के पगचिह्नोंको देखा , तो देखकर हैरान रह गया , कि उसके जीवन-पथ में अनेक जगहों पर , दो की जगह एक ही जोड़ी पादचिह्न नज़र आ रहे थे। उसे यह भी पता चला कि , वे पगचिह्न , उन घड़ियोंके थे , जब वह किसी संकट एवं दुखी अवस्था में था। वे इस दिव्यानुभूति से विस्मित हो उठा , और आपने , अपने आराध्य...