केचिद्विवा तथा रात्रौ प्रनिन्स्तुल्यद्रुष्टयः। .ज्ञानिनो मनुजाः सत्यं किं तु ते न हि केवलम्। । .यतो हि ज्ञानिनः सर्वे पशुपक्षिमृगादयः। .ज्ञानं च तन्मनुष्याणां यत्तेषां मृगपक्षिणां। ।मनुष्याणां च यत्तेषां तुल्यमन्यत्तथोभयोः। ।
कुछ प्राणि दिन में नहीं देखते दुसरे रात में नहीं देखते तथा कुछ ऍसे प्राणि हैं जो दिन और रात में बराबर देखते हैं। यह तो ठीक हैं मनुष्य समझदार होते हैं ; किंतु केवल वे ही नहीं होते। पशु ,पक्षी और मृग आदि सभी प्राणि समझदार होते हैं। मनुष्योंके समझ भी वैसी ही होती हैं , जैसी उन मृग और पक्षी आदि की होते हैं. तथा जैसी मनुष्यों की होती हैं ,वैसी मृग-पक्षी आदि की होती हैं। देवी भागवत अध्यायम -१ (४८ ,४९ ,५० )