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പെരുമാനൊരു മാതൊരുപാകൻ.


കൊങ്കുനാട്ടിലൊരു പൊട്ടക്കെണ -
ണറ്റിങ്കലിരുന്നാ പ്പെരുമാനൊരു കഥ കോറി
അച്ചടിച്ച പൊത്തകത്തിന്റെ മൊത്തം
നൂറ്റുക്കെമ്പതും വിറ്റപോയപ്പം
പെ൯ഗ്വിനൊന്നടിത്തട്ടീന്ന്
പൊങ്ങിവന്നാ പൊത്തകമടിച്ചു മാറ്റീട്ടാ-
ധുനിക സഭ്യ ഭാഷാ വിവർത്തന മൊണ്ടാക്കീ -
ട്ടു പിന്നെ , മാക്റിക്കൂട്ടങ്ങളെ ക്കൊണ്ടാ-
പ്പെരുമാനെക്കല്ലെറീക്കുന്ന
വില്പ്പന തന്ത്റമോന്നു മെനഞ്ഞു
എലക്കും മുള്ളിനും കേടുവരാണ്ട്
മെനഞ്ഞോരടവിന്നൊടുവില്
പോട്ടക്കെണററിലെ മുറിമൂക്കൻ പെരുമാൻ -
ചേരമാൻ പെരുമാ , നേറുകൊണ്ട് ചുരുണ്ടപ്പം
ഒറ്റ ഒറേൽ രണ്ടുവാളോന്നു ചോദിച്ചും -
കൊണ്ടാ പെ൯ഗ്വിൻ പോട്ടക്കെണറ്റീന്ന്
പൊട്ടക്കൊളത്തിലോട്ടോറ്റച്ചാട്ടം
വിഢിപ്പെട്ടീൽ കഥയറിയാതാട്ടം
കണ്ട കഴുതക്കൂട്ടം  ഞങ്ങൾ,  നാണം കെട്ടോർ നാട്ടവർ.

  മനോജ്‌ കുറുപ്പ് പത്തനംതിട്ട
 ആധുനിക വിപണന  തന്ത്റങ്ങൾ 











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अर्चिरादि मार्ग

प्राणियों केलिए वर्त्तमान शरीर को त्याग कर इस लोक से परलोक में जाने के, वेदों में  दो मार्ग बताये गये  हैं - एक देवयान और दूसरा पितृयान।  देवयान मार्ग शुक्ल और दीप्तिमय हैं तो , पितृयान कृष्ण और  अन्धकारमय हैं।  इसीका गीता में भी प्रतिपादन किया गया हैं :- शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते । एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुनः ॥ ८.२६ ॥ क्योंकि शुक्ल और कृष्ण – ये दोनों गतियाँ अनादिकालसे जगत् – (प्राणिमात्र) के साथ (सम्बन्ध रखनेवाली) मानी गयी हैं । इनमें से एक गति में जानेवाले को लौटना नहीं पड़ता और दूसरी गति में जानेवाले को पुनः लौटना पड़ता है । (८.२६) शुक्ल अधवा देवयान को अनावृत्ति ( मुक्ति) मार्ग और कृष्ण ( पितृयान )को पुनरावृत्ति मार्ग बताया गया हैं।  इस मुक्ति मार्ग को ही अर्चिरादि मार्ग कहते हैं।  अर्चि अग्नि को कहते हैं जो प्रकाश कारक हैं।   अर्चिरहः सितः पक्ष उत्तरायण वत्सरो।  मरुद्रवीन्दवो विद्युद्वरुणेंद्र चतुर्मुखाः। । एते द्वादश धीराणां परधामा वाहिकाः।  वैकुण्ठ प्रापिका विद्युद्वरुणा देस्त्वनुग्रहे।।...

अर्चिरादि मार्ग

प्राणियों केलिए वर्त्तमान शरीर को त्याग कर इस लोक से परलोक में जाने के, वेदों में  दो मार्ग बताये हाय हैं - एक देवयान और दूसरा पितृयान।  देवयान मार्ग शुक्ल और दीप्तिमय हैं तो , पितृयान कृष्ण और  अन्धकारमय हैं।  इसीका गीता में भी प्रतिपादन किया गया हैं :- शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते । एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुनः ॥ ८.२६ ॥ क्योंकि शुक्ल और कृष्ण – ये दोनों गतियाँ अनादिकालसे जगत् – (प्राणिमात्र) के साथ (सम्बन्ध रखनेवाली) मानी गयी हैं । इनमें से एक गति में जानेवाले को लौटना नहीं पड़ता और दूसरी गति में जानेवाले को पुनः लौटना पड़ता है । (८.२६) शुक्ल अधवा देवयान को अनावृत्ति ( मुक्ति) मार्ग और कृष्ण ( पितृयान )को पुनरावृत्ति मार्ग बताया गया हैं।  इस मुक्ति मार्ग को ही अर्चिरादि मार्ग कहते हैं।  अर्चि अग्नि को कहते हैं जो प्रकाश कारक हैं।  अर्चिरहः सितः पक्ष उत्तरायण वत्सरो। मरुद्रवीन्दवो विद्युद्वरुणेंद्र चतुर्मुखाः। । एते द्वादश धीराणां परधामा वाहिकाः। वैकुण्ठ प्रापिका विद्युद्वरुणा देस्त्वनुग्रहे।।   ब्रह्मज्ञानी मु...