Atithi devo bhavah ...!






http://kurup-man.podomatic.com/entry/2015-01-24T03_56_20-08_00
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
सवधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।

अछी प्रकार आचरण में लाये हुए 'दूसरोंके' धर्म से " गुणरहित " भी "अपना " धर्म अत्युत्तम हैं और दुसरे का धर्म भय को  देनेवाले हैं।  अपने धर्म में मरना कल्याण कारक हैं।
श्रीमद भगवत गीता :- ३/३५
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मान्स्वनुष्ठितात्।
स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।

श्रीमद भगवत गीता :- १८/४६
अछि तरह आचरण में लाये हुए दुसरे केधर्म से गुणरहित ही अपना धर्मश्रेष्ठ हैं। क्योंकि " स्वभाव ' से नियत किये हुए स्वधर्मरूप कर्म को करता मनुष्य पापको प्राप्त नहीं होता। 
Why Was Kashi Created?

Popular posts from this blog

अर्चिरादि मार्ग

THE PANCHA MAHA YAJNAS : Five Daily Sacrifices To Be Performed By Every Householder

Chanakya quotes - Subhashita