भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।।
हे अर्जुन...!, शरीर रूप यंत्र में आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियोंको , अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी माया से उनके कर्मोंके अनुसार भ्रमण कराता हुआ , सब प्राणियोंके ह्रदय में स्थित हैं।
हिंसायाम् दुयते यस्मात् तस्मात्।
सः हिन्दुरित्यदिधीयते।।
हिंसा में शोक करनेवाले को ही हिन्दू कहते हैं , क्योंकी " ईशावास्याम् इदं सर्वम् " इस प्रमाण के अनुसार प्रपंच के समस्त जीव-जन्तुओंके शरीर में परमेश्वर निवसित हैं ।
"परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः
परोपकाराय बहन्ती नद्यः
परोपकाराय दुहन्ति गावः
परोपकाराय मिदं शरीरम,"
वहन्ति नद्यः स्वयमेव वृष्टिः ।
खादन्ति न स्वादु फलानि वृक्षाः ।।
पयोधरेण प्ररुहन्ति सस्याഃ।
परोपकाराय भवन्ति संतः। ।
नीति शतकम् - भर्तृहरि
നദികൾ താനേ ഒഴുകുന്നു , മഴപെയ്യുന്നതും , വൃക്ഷങ്ങൾ തളിർത്തു പൂത്തു കായ്ക്കുന്നതും , പശു പാൽ ചുരത്തുന്നതും, ഇവ ഒന്നും താന്താങ്കൾക്ക് വേണ്ടിയല്ല എന്നത് പോലെ, നമ്മുടെയീ ശരീരവും , പരോപകരത്തിനായെന്നറിയുക...!