कुरूप ऋषियोंके शाप।

एक बार नन्दबाबा आदि गोपोंने , शिवरात्रिके अवसर पर अम्बिका वनकी यात्रा की।  वहाँ  उन लोगोंने सरस्वती नदी में स्नान करके , भगवान शंकर और माता पार्वतीजी का भक्तिभावसे पूजन किया।  उस दिन  वे लोग उपवास कर रखा था , इसलिए केवल जल पीकर , रातको नदीके तट पर ही , बेखाट के सो गए।  वहाँ  अम्बिका वन में ,  एक  बड़ा भारी अजगर रहता था , जो बहुत ही भूखा था। उसने सोये हुए नन्दजी को  पकड़ लिया।  अपने प्राण रक्षा केलिए उन्होंने बड़ी दीनतासे भगवान्  श्रीकृष्ण को  ज़ोर ज़ोरसे पुकारने लगे।  क्षण में ही  श्रीकृष्ण वहाँ  पहुँचकर , उस अजगरको अपने चरणकमलोंसे छू लिया।  उनके चरणोंके स्पर्श होते ही , वह जीवी अजगर का शरीर छोड़ कर , तुरंत एक अतिसुन्दर  रूपवान पुरुष बन  गया।  उसके शरीरसे दिव्यज्योति निकल रही थी।  वह श्रीकृष्णजी को प्रणाम करने  के बाद , हाथ जोड़ कर , उनके सामने खड़ा हो गया।  तब भगवान ने पुछा । तुम कौन हो ? तुम्हें अजगरके निंदनीय योनि कैसे प्राप्त हुई ?जवाब में उसने बोला।  भगवन।   पहले मैं सुदर्शन नाम का  एक विद्याधर था।  मैं धन और रूप सम्पति से मत्त होकर   विमान द्वारा सम्पूर्ण दिशाओं में घूमता -फिरता   था। एक दिन दौर्भाग्यवश , अङ्गिरा गोत्र के कुरूप ऋषियोंको देखकर  मैंने उनकी बहुत हँसी  उड़ायी।  तब उन्होंने शाप देकर मुझे अजगर के योनि में डाल दिया।  उन कृपालु कुरूप महर्षियोंने , अनुग्रह केलिए ही मुझे शाप दिया था , जो आज उसी का प्रभाव हैं  कि   साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण ने अपने चरण कमलोंसे  स्पर्श किया हैं।  आज मेरे सारे अशुभ नष्ट हुए और मुक्ति भी प्राप्त हुआ।  फिर सुदर्शन ने भगवान की प्रदक्षिणा की , उनके चरणों में मस्तक झुकाया और आज्ञा लेकर अपने लोक को प्रस्थान किया।  नन्दबाबा एक भारी संकट से छूट भी गए।

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