आज का चिंतन ...!

उत्तममंकुशलमं  विद्यां मध्यमं कृषिवाणिज्यम्।
अधमं सेवयावृत्ति विषमं भारजीवनमं।

संगीत साहित्य इत्यादियोंके द्वारा उपजीवन चलाना उत्तमं हैं ; कृषि वाणिज्य से जीवन निवृत्ति मध्यमं माना जाता हैं; एवं दूसरोंके लिए सेवावृत्ति करना  (सब का सेवा करना अधवा  नौकरी करना )अधम , और  भार ढोकर जीवन वृत्ति असाध्य ही मानना चाहिए।
"परिचर्यात्मकमं  कर्मं शूद्रस्यापि स्वभावजम् "
श्रीमद भगवत  गीता - १८/४
'शूद्र स्वभाव में जन्मे लोकोंके स्वाभाविक स्वभाव हैं सेवा वृत्ति अधवा दूसरोंके सेवा करना।'
चातुर्वर्ण्यं माया सृष्टं गुणकर्म विभागशः।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्य कर्तारमव्ययम्।

 श्रीमद भगवत  गीता- ४/१३
ब्राह्मण, क्षत्रिय ,वैश्य एवं शूद्र इन चार वर्णोंके समूह - गुण  , कर्मों का विभाग पूर्वक मेरे द्वारा (भगवान श्रीकृष्ण ) रचा गया हैं। 


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